मुरलिया की धुन जबसे कानों पड़ी है बँधी डोर से हम खिंचे जा रहे थे। मुरलिया की धुन जबसे कानों पड़ी है बँधी डोर से हम खिंचे जा रहे थे।
नहीं सकूंगा अर्थात्, मन को स्थिर करते हो, क्यों नहीं सकोगे, कोशिश तो करो। नहीं सकूंगा अर्थात्, मन को स्थिर करते हो, क्यों नहीं सकोगे, कोशिश तो करो।
हर रोज घड़ी दो घड़ी ठहर जाता हूँ, किसी सुनसान जगह पे जहाँ थके धड़कनों को सुकून मिले, हर रोज घड़ी दो घड़ी ठहर जाता हूँ, किसी सुनसान जगह पे जहाँ थके धड़कनों क...
खिल गई कलियाँ और फूल बन गईं नज़ाकत ये ऐसी किसी-किसी में आये , नशा जो तुम्हारी आँखों में है मय भी दे... खिल गई कलियाँ और फूल बन गईं नज़ाकत ये ऐसी किसी-किसी में आये , नशा जो तुम्हारी आ...
आँखें नहीं देखती अब ख़्वाब के मैं किसी के घर की शोभा बनूँ और दिल भी कहाँ खाली है नए रंगीन सपनों... आँखें नहीं देखती अब ख़्वाब के मैं किसी के घर की शोभा बनूँ और दिल भी कहाँ खाल...
मैंने आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी खेंचा तो कहा पिस गई पिस गई बेदर्द नज़ाकत मेरी मैंने आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी खेंचा तो कहा पिस गई पिस गई बेदर्द नज़ाकत मेरी